क्या होते है इलेक्टोरल बॉन्ड ? | इलेक्टोरल बॉन्ड की क्या थी खूबी ? |
इलेक्टोरल बॉन्ड क्यों जारी हुआ था ? | कैसे काम करता है ये इलेक्टोरल बॉन्ड ? |
क्या होते है Electoral Bond ?
Electoral Bond की शुरुवात साल 2018 में हुई। इसे लागू करने के पीछे यह मत था कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और बिना किसी विवाद के धन आएगा। इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती थीं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर धन हासिल करते थे। भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को Electoral Bond जारी करने और उसे भुनाने के लिए अधिकृत किया गया था। ये शाखाएं नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु की थीं। पहली बार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) ने वित्त विधेयक के जरिए करीब 7 साल पहले वर्ष 2017 में पेश किया था। चुनावी बॉन्ड स्कीम की अधिसूचना को केंद्र सरकार ने 2 जनवरी 2018 को जारी किया था। इसे कैश में चुनावी चंदे के विकल्प के रूप में पेश किया गया था ताकि राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाई जा सके। इस बॉन्ड की योजना 2017 में आई, और 2017 से ही इस मामले में कोर्ट में केस चल रहा है।
इलेक्टोरल बॉन्ड क्यों जारी हुआ था ?
चुनावी फंडिंग की व्यवस्था में सुधार लाने के लिए सरकार ने साल 2018 में Electoral Bond को जारी किया था, 2 जनवरी 2018 को तत्कालीन मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को अधिसूचित किया था, इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंस एक्ट 2017 के तहत लाया गया था। यह बॉन्ड साल में 4 बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किया जाता था। इसके लिए ग्राहक बैंक की शाखा में जाकर या उसकी वेबसाइट पर ऑनलाइन जाकर इसे खरीद सकता था। केंद्र सरकार ने इस दावे के साथइलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की थी ताकि फंडिंग में पारदर्शिता बानी रही, और बिना विवाद के धन आएगा, वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जनवरी 2018 में लिखा था, “Electoral Bond की योजना राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था में साफ-सुथरा धन लाने और ‘पारदर्शिता’ बढ़ाने के लिए लाई गई है।”
Electoral Bond की क्या थी खूबी ?
इसकी सबसे बड़ी खूबी यह थी कि कोई भी डोनर अपनी पहचान छुपाते हुए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से एक करोड़ रुपए तक मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीद कर अपनी पसंद के राजनीतिक दल को चंदे के रूप में दे सकता था, ये व्यवस्था दान करने वाले व्यक्ति की पहचान नहीं खोलती, और इसे टैक्स से भी छूट प्राप्त है। आम चुनाव में कम से कम एक फीसदी वोट हासिल करने वाले राजनीतिक दल को ही इस बॉन्ड से चंदा मिल सकता था।
कैसे काम करता है ये Electoral Bond ?
SBI की निर्धारित शाखाओं से महीने के 10 दिनों के भीतर कोई व्यक्ति या ग्रुप या कॉर्पोरेट बॉन्ड खरीद सकता था बॉन्ड जारी होते थे और उनकी वैधता 15 दिन तक होती थी। ये बॉन्ड 1000 रुपए, 10000 रुपए, एक लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किए जाते थे। बॉन्ड खरीदने के लिए एक फॉर्म भरना जरुरी था। Electoral Bond ACT 2017 के तहत लाये लाये गए थे।
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार Electoral Bond का डेटा सार्वजनिक किया है। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने 12 मार्च को इस डेटा को चुनाव आयोग को सौंपा था। इस डाटा को 15 मार्च तक सार्वजनिक किया जाना चाहिए था, लेकिन चुनाव आयोग ने यह डेटा 14 मार्च को ही जारी कर दिया है। उन्होंने एक अलग Portal link भी दिया है।
SBI: सीनियर अधिवक्ता हरीश ने कहा है कि मै SBI की तरफ हूँ हमें आपके आदेश को पूरा करने के लिए कुछ वक्त और चाहिए
SBI: हमारे सामनेएक समस्या आ रही है हम पूरी प्रक्रिया को पलटने की कोशिस कर रहे है एक SOP बनाई गई थी कि हमारे कोर बैंकिंग सिस्टम में बॉन्ड खरीदने वाले का नाम गुप्त हो।
CJI:मेरी अनुरोध आपकी एप्लिकेशन को देखने की है। मैं कह रहा हूं कि डोनर की जानकारी संबंधित शाखा में सीलबंद लिफाफे में भेजी जाती है। सभी सील कवर डिपॉजिट्स मुंबई की मुख्य शाखा में भेजे जाते हैं और दूसरी तरफ, 29 अधिकृत बैंकों से डोनेशन हासिल किया जा सकता है।
CJI:आपने बताया कि डोनेशन देने वाले और राजनीतिक पार्टी, दोनों की जानकारी मुंबई ब्रांच में भेजी जाती है। इसका मतलब है कि दो तरह की जानकारियां होती हैं। आपने कहा कि इन जानकारियों का मिलान करना समय लेने वाली प्रक्रिया है। हालांकि, हमारे आदेश में हमने इन जानकारियों के मिलान की बात नहीं कही है। हमने केवल यह कहा है कि इन जानकारियों को जाहिर किया जाए।