भारत में बेरोजगार युवा यह तथ्य बेहद चिंताजनक है दुनिया के सबसे बड़े युवा आबादी वाले देश के रूप में भारत के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती भारत में बेरोजगार युवा है। हाल ही में रिपोर्ट के मुताबिक 83% बेरोजगार युवा हैं, आईएललो (ILO) ने इंस्टिट्यूट ऑफ़ डेवलेपमेंट (IHD) के साथ मिलकर “इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024” पब्लिश की है इस रिपोर्ट के मुताबिक अगर भारत में 100% लोग बेरोजगार हैं तो उसमें 83% लोग युवा ही हैं।यह स्थिति देश के विकास के लिए भी बाधाओं का स्रोत बनती है। युवाओं को अपने पोटेंशियल को समझने और समृद्धि के लिए, संपूर्ण रूप से उपयोग करने के लिए उन्हें उचित मार्गदर्शन, शिक्षा, और प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए।
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बेरोजगारी क्या है
योग्यता के अनुसार काम न मिलना बेरोजगारी कहलाता है या कार्य करने के योग्य तथा इच्छुक व्यक्तियों द्वारा प्रचलित मज़दूरी पर काम की मांग के बावजूद भी यदि उसे रोज़गार उपलब्ध न हो, तो इस प्रकार की स्थिति बेरोज़गारी कहलाती है।
बेरोजगारी का मापन
बेरोजगारी दर = (श्रमिकों की कुल संख्या/कुल श्रम बल) x 100
भारत में बेरोजगार युवा की समस्या
भारत में बेरोजगार युवा की समस्या कितनी भयानक है, इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि इस समय भारत में जितने बेरोजगार हैं, उनमें से 83 फीसदी युवा हैं। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) और इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट (IHD) की इंडिया एंप्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024 को चीफ इकनॉमिक एडवाइजर वी अनंता नागेश्वरन ने 26 मार्च को प्रस्तुत की थी 2000 में इनमें 35.2 फीसदी ही भारत में बेरोजगार युवा थे लेकिन अब 2022 में यह आंकड़ा 65.7 फीसदी पर पहुंच गया। सेकंडरी एजुकेशन के बाद स्कूल छोड़ने की दर ऊंची बनी हुई है। भारत में बेरोजगार युवा
रेगुलर रोजगार में गिरावट
डेटा के अनुसार, 2000 से 2018 के बीच लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (LFPR), वर्कर पॉपुलेशन रेश्यो (WPR), और बेरोजगारी दर (UR) में कमी आई थी, और 2019 के बाद इनमें थोड़े सुधार के संकेत भी दिखे। हालांकि, रिपोर्ट में इस सुधार को अब भी समाधान की तरफ नियमित रूप से न जाने की सलाह दी गई है क्योंकि इसमें अभी भी किंतु-परंतु हैं। वेतन तो एक हद तक स्थिर रहा है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में इसमें गिरावट आई है। विशेष रूप से, रेगुलर वर्कर्स और अपना कारोबार कर रहे लोगों के वेतन में 2019 के बाद गिरावट आई है। अनस्किल वर्कर्स के लिए स्थिति और भी गंभीर है, क्योंकि उनमें से अधिकांश को 2022 में नियमित न्यूनतम वेतन नहीं मिली। रिपोर्ट के अनुसार, इनफॉर्मल एम्प्लॉयमेंट का हिस्सा लगभग 90 फीसदी है, जो लेबर मार्केट के लिए चुनौतीपूर्ण है।
इसके अतिरिक्त रेगुलर एंप्लॉयमेंट की बात करें तो 2000 के बाद इसमें लगातार बढ़ोतरी दिखी लेकिन 2018 से गिरावट का रुझान रहा। रिपोर्ट के अनुसार आजीविका को लेकर असुरक्षा बढ़ी है।
पढ़ने-लिखने वालों पर भी अधिक पड़ी बेरोजगारी की मार
रिपोर्ट के अनुसार पढ़ने-लिखने वाले युवाओं पर बेरोजगारी की मार अधिक पड़ी है। वर्ष 2021 में युवाओं की हिस्सेदारी केवल 27 फीसदी ही थी जो वर्ष 2036 तक घटकर 23 फीसदी पर आने का अनुमान लगाया जा रहा है। कोविड के समय यूथ लेबर मार्केट में चुनौतियां बढ़ी हैं। लॉकडाउन के बाद रिकवरी तो हुई है लेकिन पूअर क्वालिटी वाले कम, खासतौर से सेल्फ-एंप्लॉयमेंट और अनपेड फैमिली वर्क में इजाफा हुआ है। 2019 के बाद रोजगार में जो इजाफा हुआ है, वह मुख्य रूप से सेल्फ-एंप्लॉयड वर्कर्स के ही चलते आया। भारत में बेरोजगार युवा का मुद्दा अत्यंत चिंताजनक है। यहाँ के युवा आज के समय में अपने रोजगार के लिए तत्परता और उत्साह से भरे हुए हैं, लेकिन बेरोजगारी की आंखों में उनका सपना टूटता जा रहा है। बेरोजगारी के मुख्य कारणों में शिक्षा की गुणवत्ता में कमी, रोजगार के अवसरों में असंतोष, तकनीकी और पेशेवर योग्यता के मेल की कमी, और विविध सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का हो सकता है। इस समस्या का समाधान करने के लिए, सरकार को नीतियों में सुधार करने, और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए कड़ी प्रयास करने की आवश्यकता है। साथ ही, युवाओं को उनकी क्षमताओं और प्रतिबद्धता के अनुसार विकसित करने के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण के क्षेत्र में नवीन दृष्टिकोण और उद्दीपन प्रदान करने की आवश्यकता है।
सामाजिक असमानता और जेंडर गैप
भारत में बेरोजगार युवा की समस्या के साथ लेबर मार्केट में जेंडर गैप का मुद्दा भी बहुत महत्वपूर्ण है, और महिलाओं की भागीदारी भी कम होना एक चिंताजनक स्थिति है। खासकर पढ़ी-लिखी महिलाओं के लिए, जिनके पास हायर एजुकेशन की उच्च स्तर की शिक्षा है, उन्हें रोजगार के लिए कई दिक्क्तों का सामना करना पड़ता है। सामाजिक रूप से फैली असमानता का असर रोजगार के क्षेत्र में भी महसूस होता है। एससी और एसटी जातियों के लोगों को भी रोजगार के अधिक मौकों के लिए कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए, समाज को सामाजिक और आर्थिक असमानता को कम करने के लिए सक्रिय रूप से काम करने की जरूरत है, ताकि सभी व्यक्ति अपने पोटेंशियल को पूरी तरह से विकसित कर सकें।
युवाओं में योग्यता की भारी कमी
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बेरोजगार युवा के बीच योग्यता की कमी है जो युवाओं के लिए चिंता का विषय है। युवाओं का एक बहुत बड़ा हिस्सा डिजिटल साक्षर नहीं है और उनके पास कोई बेसिक जानकारी भी नहीं है। इस वजह से भारत में बेरोजगार युवा की समस्या बढ़ती जा रही है बेरोजगारी की मार सबसे अधिक युवाओं पर पड़ रही है। रिपोर्ट के अनुसार 90 फीसदी युवा स्प्रेडशीट पर मैथमिटकल फॉर्मूला भी नहीं लिख पातें हैं, 60 फीसदी फाइल को कॉपी-पेस्ट नहीं कर पाते हैं और कम से कम 75 फीसदी युवा को फाइल अटैच कर ईमेल भेजना भी नहीं आता है।
रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि साल 2019 के बाद सेल्फ-एम्प्लॉयड और नियमित कर्मचारियों की आय में काफी गिरावट हुई है, न्यूनतम वेतन लेने वाले ऐसे कैजुअल कर्मचारी जिनके पास कोई भी योग्यता नहीं है उन्हें 2022 में वेतन नहीं मिला था।
कोरोनाकाल के दौरान भी बेरोजगारी दर में इतना तेज इजाफा हुआ की कई लोगों की नौकरियां चली गई थी। कम पढ़े-लिखे लोगों से ज्यादा इस दौरान अधिक पढ़े-लिखे लोगों की नौकरियां चली गई थी।
भारत में बेरोजगार युवा का हल कैसे
- रोजगार सृजन को बढ़ावा देना
- श्रम बाजार पैटर्न और युवा रोजगार पर ज्ञान को बढ़ावा देना।
- रोजगार की गुणवत्ता में सुधार करना
- श्रम बाज़ार की असमानताओं को संबोधित करना
- कौशल और बाजार नीतियों को और अधिक बढ़ावा देना