सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह कोई नृत्य, गाना, खाने-पीने का अवसर नहीं है। यह किसी व्यापारिक लेन-देन के समान नहीं है। जब तक इसमें रस्में पूरी नहीं होतीं, तब तक इसे Hindu Marriage act के तहत वैध नहीं मन जाएगा न्यायाधीश बीवी नागरत्ना और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कारिक और धार्मिक उत्सव है, जिसे भारतीय समाज के महत्वपूर्ण संस्थान के रूप में दर्जा दिया जाना चाहिए।
Hindu Marriage act के अनुसार क्या है विवाह
Hindu Marriage act के अनुसार विवाह दो लोगों के बीच जीवन भर का बंधन है। विवाह दो लोगों को एक करने की परंपरा है। वहीं, दूसरे शब्दों में दो लोगों के बीच के रिश्ते को सामाजिक और धार्मिक मान्यता देना ही विवाह है। लेकिन, क्या आपके मन में कभी नहीं आया कि आखिर विवाह की शुरुआत हुई कैसे, सबसे पहले किसका विवाह हुआ, चलये आज हम इस पर गंभीरता से चर्चा करेंगे।
कैसे हुई विवाह की शुरुवात
शुरु में विवाह जैसा कुछ नहीं था स्त्री और पुरुस दोनों ही स्वतंत्र रहते थे। उस समय कोई भी अनजान पुरुष किसी भी अनजान महिला को पकड़कर ले जाया करता था। इस संबंध में महाभारत में एक कथा मिलती है।। एक बार उद्दालक ऋषि के पुत्र श्वेतकेतु ऋषि अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी वहां एक अन्य ऋषि आए और उनकी माता को उठा ले गए। जिसे देख श्वेत ऋषि को गुस्सा आ गया। उसके पिता ने उन्हें बताया की प्राचीन काल से यहीं नियम चलता आ रहा है।
श्वेत ऋषि ने इसका विरोध करते हुए अपने विचार व्यक्त किए और बताया कियह तो पाशविक प्रवृत्ति के समान है, जिसमें जीवन जीने का तरीका बिल्कुल जानवरों के समान है। इसके परिणामस्वरूप, उन्होंने विवाह के नियम बनाए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई स्त्री विवाहित होने के बाद दूसरे पुरुष के साथ संबंध बनाती है, तो उसे गर्भ हत्या करने जितना पाप लगेगा। उन्होंने बताया कि विवाहित पुरुष जो अपनी पत्नी को छोड़कर किसी अन्य महिला के पास जाते हैं, उन्हें भी इस पाप का परिणाम भोगना होगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि विवाहित जीवन में, स्त्री और पुरुष अपनी गृहस्थी को मिलकर चलाते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि पति के रहते हुए कोई स्त्री उसकी आज्ञा के विपरीत अन्य पुरुष के साथ संबंध नहीं बना सकती।
विवाह के प्रकार
विवाह पहले 8 प्रकार के हुआ करते थे- दैव, ब्रह्म, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर, गंधर्व, राक्षस, और पिसाच, लेकिन वर्तमान समय में ब्रह्म विवाह काफी प्रचलित है।
क्या है Hindu Marriage act
Hindu Marriage act वर्ष 1955 में लागू हुआ था। इस एक्ट के तहत दो हिन्दू जाति के पुरुष और स्त्री शादी कर सकते है, बशर्ते उन दोनों के आपस में खून का रिश्ते नहीं होने चाहिए। साथ ही Hindu Marriage act कहता है कि अगर कोई युवक या युवती दूसरी शादी करना चाहते है तो बिना तलाक दिए वह दूसरा विवाह नहीं कर सकती है।
Hindu Marriage act हिन्दुओं के अलावा बौद्ध और जैन धर्म पर भी लागू होता है। इस एक्ट में, दुल्हे की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और दुल्हन की न्यूनतम आयु 18 वर्ष होनी चाहिए। यह एक्ट धार्मिक आधार पर हिंदू, बौद्ध, जैन और सिखों पर लागू होती है, और यह देश में रहने वाले सभी व्यक्तियों पर भी लागू होती है, जो पारसी, मुस्लिम, ईसाई, या यहूदी नहीं हैं।
क्या है स्पेशल Hindu Marriage act
विशेष विवाह अधिनियम, या कहें स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 में लागू हुआ था। इस एक्ट के तहत, भारतीय संविधान के अनुसार, दो अलग-अलग जाति या धर्मों के लोगों को विवाह करने की अनुमति दी जाती है। यह कानून सभी भारतीय नागरिकों के लिए मान्य है, और उन लोगों के लिए भी जो भारतीय हैं, पर भारत के बाहर रह रहे हैं। इस एक्ट के तहत, किसी भी धर्म के व्यक्ति विवाह के बंधन में बंध सकते हैं, बस शर्त यह है कि वे भारतीय हों। इस एक्ट की नींव 19वीं सदी में रखी गई थी, जब सिविल मैरिज एक्ट को लेकर पहल हुई थी। इसके बाद, 1954 में यह एक्ट संशोधित किया गया। नए एक्ट में 3 महत्वपूर्ण नियम बनाए गए थे –
- खास तरह की शादियों के लिए रजिस्ट्रेशन सुविधा: यह नियम खास तरह के विवाहों के लिए रजिस्ट्रेशन की सुविधा प्रदान करता है, जिससे विवाह की प्रक्रिया को और अधिक समृद्ध बनाया जा सकता है।
- अलग-अलग धर्मों के लोगों की शादी के लिए सुविधा: यह नियम अलग-अलग धर्मों और जातियों के लोगों के बीच शादी की प्रक्रिया को सरल बनाता है, जिससे धार्मिक या सामाजिक समानता को बढ़ावा मिले।
- शादी के बाद तलाक की सुविधा: यह नियम विवाहित जोड़े को तलाक की प्रक्रिया के लिए सुविधाजनक मार्गदर्शन प्रदान करता है, जो समाज में संघर्ष या तनाव को कम करने में मदद करता है।
कोर्ट ने क्या कहा Hindu Marriage act के बारे में
कोर्ट ने कहा कि Hindu Marriage act में बहुपति और बहुविवाह जैसी प्रथाओं का कोई स्थान नहीं है। संसद भी इससे सहमत है कि विभिन्न रीति-रिवाज और परंपराओं के स्थान पर एक ही प्रकार का विवाह हो। इसलिए, कई सदियों के बाद और हिंदू विवाह अधिनियम के प्रारंभ होने के बाद, एक महिला का एक पुरुष और एक पुरुष का एक महिला के साथ विवाह को कानूनी तौर पर मान्यता दी गई है।